उम्र का तकाज़ा..
उम्र का तकाज़ा..
बढ़ती उम्र के पड़ाव पर आकर
बदल जाता है कितना कुछ,
बच्चे सभी हो जाते हैं
अपने अपने कार्यों में मस्त,
स्वास्थ्य हो जाता है ठीला
जीवन हो जाता है अस्त व्यस्त।
मेरे भी पड़ोस में रहने आये
कुछ दिल पहले एक बुज़ुर्ग दम्पति ,
दोनो ही हैं नितांत अकेले
हैं कुछ यादें ही अब उनकी संपत्ती।
जो माताजी हैं वो हर थोड़ी देर में
बजा देती हैं मेरे घर की घंटी
कहती हैं..‘बंटी आया’
‘कहीं आपके घर तो नही बंटी।
यही तो होते हैं हमेशा उनके सवाल
जिन्हें सुन कर मैं सोचती हूँ,
जाने क्यूँ बच्चे कर देते है
अपने ही मॉं बाप का ऐसा हाल।
शायद उन्हें यहां पर छोड़कर
विदेश चले गये अपने बेटे का है
बेसब्री से इंतज़ार
उनका यह हाल देख हो जाता है मेरा ह्रदय तार तार।
एक ही बात को बार बार दोहराते
रहना ,
जानकर भी सत्यता से अनजान रहना ,
बुढापे में पड़ता है सभी को यही
सहना
शायद यही है बुढ़ापे की सनक।
है ना?