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Jyoti Astunkar

Tragedy

4  

Jyoti Astunkar

Tragedy

उलझनें

उलझनें

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बड़ी ज़ोर की हवा चली है आज,

रास्तों पर इतनी तेज़ हवा में चलना,

उफ़ आज ही क्यों था इस तूफ़ान को आना,

जब मैंने इन राहों से था गूज़रना,


मेरे लंबे बाल उलझ से गए हैं,

सुलझाने बैठ तो जाऊं इन्हें,

पर सुलझाने के इस दौर में,

वाकिफ हूं मैं के कुछ टूट जायेंगे,


रिश्तों के आलम भी आजकल,

कुछ ऐसे ही तो होते हैं,

कड़वी बातें, बुरे हालात,

आते ही सब उलझा से जातें हैं


उलझे रिश्तों को सुलझाने में,

समय निकलता जाता है,

कितनी गांठे और टूट गए कितने,

वो दौर हमें दिखा जाता है।



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