उलझन
उलझन
नित्य प्रति दिन एक ही उलझन,
क्या बनाऊँ आज मैं भोजन
इसी सोच मे फ्रिज को खोला,
शायद खुल जाए कोई ताला।
इतराती हुई भिंडी बोली,
मेरी तो है बात निराली,
बच्चों की मैं एकदम ख़ास,
मुझे बना लो क्यों न आज।
टमाटर फूल कर हो रहा कुप्पा,
सलाद में खा लो मुझको कच्चा,
स्वाद का मैं हूँ एकदम सच्चा,
मेरा कोई विकल्प न दूजा।
बैंगन जल भुनकर बोला,
क्यों न बना लो मेरा भूरता,
सब्ज़ियों का मैं हूँ राजा,
देखो मैंने ताज है साजा।
पालक भी कर रहा पुकार,
सुनो मैं हूँ पालनहार,
गिल्की लौकी छुप गई कोने,
सोचकर अपनी क्या औक़ात है होने।
मेरी धड़कन बढ़ रही थी,
सब्ज़ियों में जंग छिड़ी थी,
बिटिया ये सब देख कर थी दंग,
मम्मी कर दो फ्रिज को बंद,
आज बना लो दाल और रोटी,
सब्ज़ियों की आज किस्मत है फूटी।