उलाहना
उलाहना
क्या तुमने मेरे सपने जगाए
क्या तुमने मुझे पुकारा ,
ओह तुमने मुझे बुलाया होता
तुमने मुझे दुलराया होता।
सपनों का जगना कैसा होता है
कलियों का चटकना कैसा होता है,
यह तो सब अनजाना है
लगता सब कुछ अनपाया है।
काश तुम मुझमें भाव जगा पाते
तुमने मेरे सपनों को संवारा होता।
क्या कामना ही तुम्हारा ध्येय था
इसी से अनुप्राणित तुम्हारी चेष्टा थी।
कभी कभी तुम मधुर हो उठते
पर संबंधों में मधुरता है ,
रसभीनी सुगंध है
यह अनुभव कराया होता।