उजड़ा आशियां
उजड़ा आशियां
जलती हवा और झुलसती छांव है
आज वो ढूंढता सुकून कहां है
न खता है न ख़फ़ा है अपने कर्म पर
न सजा है न दफा है अपने धर्म पर
कुरेदा सदा तीर से चुभती घाव है
जलती हवा और झुलसती छांव है
आज वो ढूंढता सुकून कहां है l
सपनों के महल में खोजते हैं खुद को
आंखें पथरा गयी देख के अपने बुत को
डूबती नजर आया जिंदगी का नाव है
जलती हवा और झुलसती छांव है
आज वो ढूंढता सुकून कहां है l
कागज की कश्ती में सवार हो चला है
राह में तूफ़ान बयार हो चला है
लगाया हमेशा जीवन की दांव है
जलती हवा और झुलसती छांव है
आज वो ढूंढता सुकून कहां है
रहम नहीं दिल में, परवाह सिर्फ सपनों की
कीमत नहीं गैरों की, न कीमत है अपनों की
धधक रही रहमतों की सदियों बसाया गांव है
जलती हवा और झुलसती छांव है
आज वो ढूंढता सुकून कहां है।