ए रात.. !
ए रात.. !
ए रात! कर न कुछ बात!
जाहिर करने दे सारे जज़्बात!
दिल पे लगा ताला, तेरे ही सामने खुलता है
अपनी पहचान का, निशान भी मिलता है
सुकून सा लगता है, जब यह सूरज ढलता है
तेरे संग यादों का, काफ़िला एक चलता है
तू आगोश में भर ले, तो हर गम बह जाता है
मन की दरारों में बस, खालीपन रह जाता है
पर महफिल भी फीकी है उस तन्हाई के सामने
जिसमें कोई अनकहे, सारे सच कह जाता है
एक दीप जलाकर अंधेरे में
सौंपा है खुदको तेरे पहरे में
तू समा ले न मुझे, तारों के घेरे में
हक का एक रिश्ता, बुन दे तेरे मेरे में
तू जचती है बेहद, इन सितारों के सेहरे में
दिखा दे प्रतिबिंब अपना, चांद के चेहरे में
यू ख़ामोश न बैठ, उलझ ले लफ्जों के फेरे में
या चल कोई खेल खेले, ढूंढ ले मुझे यादों के ढेरे में।
