स्त्री और यात्रा
स्त्री और यात्रा
एक दिन हम सब स्त्रियां
करेंगी हड़ताल
मांगेंगी घर की जिम्मेदारियों से
कुछ दिनों के लिए मुक्ति
सौंपेंगी घर की चाबियां पुरुषों के हाथ
बतायेंगी कैसे बनेगा दाल - भात
समझायेंगी बच्चों की पसन्द - नापसन्द
रख जायेंगी एक जगह चीजें जरूरतमंद
और चल देंगी एक लम्बी यात्रा पर
हम देखेंगी पहाड़, सागर, झरने, नदियाँ
हम करेंगी प्रकृति से खूब सारी बतियां
हम ठहरेंगी किसी मनपंसन्द होटल में
अपने दुखों को फेंक देंगी बन्दकर बोतल में
खरीदेंगी सुन्दर सी कई पश्मीना शॉल
हम ना करेंगी उन दिनों कोई माप तौल
हम गायेंगी कोई मनभावन गीत
हम तोड़ेंगी कुछ बेतुकी रीत
उन दिनों हम बेफिक्र खिलखिलायेंगी
आजाद हवा में आंचल लहरायेंगी
हम जीयेंगी उस यात्रा का हर एक पल
ताकि जी सकें सुकूं से आने वाला कल
वो यात्रा होगी हमारे जीवन का
सबसे खूबसूरत पड़ाव
उस पड़ाव तक पहुंचने के लिए
हम स्त्रियां करेंगी हड़ताल
पुरुषों! तुम घर संभालना।