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Sachhidanand Maurya

Abstract

4.5  

Sachhidanand Maurya

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जीवन पल पल एक सफर है

जीवन पल पल एक सफर है

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411


कभी धूप कभी छांव असर है,

यह तेरे भी घर है मेरे भी घर है,

हंस के रोके काट रहा है मानव,

जीवन पल पल एक सफर है।


कोई सवेरा नूतन इसमें,

शाम कोई रूदन जिसमें,

कभी डर है कभी जीत,

कभी होता मंचन इसमें।


नित नित काम शुरू होता है,

कोई जगता रहे कोई सोता है,

मंजिल कोई अकेला ढूंढता है,

तो साथ किसी के हमसफ़र है।


कोई श्रम स्वेद में होता तर है,

कोई खोज में लगा निरंतर है,

हल पाता कोई अपने प्रश्नों का,

खड़ा कोई यहां बिना उत्तर है।


कोई कहां कैसे घूम रहा सब खबर है,

जग का सी सी टी वी जो ऊपर है,

कभी डिलीट नहीं होता स्टोरेज उसका,

वह अजर अनंत अमिट और अमर है।


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