उदास दरख़्त ---
उदास दरख़्त ---
यों खड़ा दरख़्त आज, कुछ उदास सा।
तोड़ कर भ्रमजाल, हरेक उपहास का।।
क्यों जल रहे, छिन्न तन बदन ललाट।
वियोग में खड़े नितान्त, प्रेम आस का।।
यों अश्रु भरी आँखें भी, जमींदोज हुई।
क्यों माया में घुटता स्वप्न, विश्वास का।।
बोझिल धरा कर रही, पुकार रो-रोकर।
क्यों ख़ाक हो रहा, बुलबुला श्वास का।।
यों मिट रहे वज़ूद, गरल अश्रु जाल में।
क्यों छाँव भी बनी अब काल ग्रास का।।
टूटे दरख़्त कहीं, कहीं कट रहे सवाल।
क्यों आह में मिला, ज्वालता वास का।।
यों कटु सत्य बन, जूझ रहा निष्कलंक।
क्यों नीरस बंजर पड़ा, ये मन त्रास का।।