तूफान
तूफान
तूफान चल रहा है
फैलिन , फनी से
भी भयंकर
महाबात्या से
कोई कम नहीं
एक एक पेड़
मकान सबकुछ
टूटने कर बिखरने लगे हैं
वो जो बरगद
जिसमें सदियों से
देवी रहते हैं
जिसे हम पूजा करते हैं
हर साल वैशाखी मेला
लगता है वहां
दो सौ साल पुराना
हमारा आस्था , भक्ति
विश्वास का ये पेड़
हमारी संस्कृति ...
वह भी टूट गया है
जिसे हम बिलकुल
देख नहीं सकते
सह भी नहीं सकते
हमारे सामने
उसका एक एक डाल
टूट कर बिखर रहा है
और उसे देख रहे हैं हम
पथरीली आंखों में
असहाय विवश लाचार।
