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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

तू नहीं तो जिंदगी नहीं

तू नहीं तो जिंदगी नहीं

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तुम्हारा प्यार अब पाना मेरी कशिश नहीं है,

तुम्हें हर बार मना लेने की कोशिश नहीं है।


सितम करने वाले तू मेरी जिंदगी ही नहीं है,

छोड़ा था हाथ मेरा तूने गर्दिशों के साये में,


देख तू आज मेरा मुकद्दर गर्दिश में नहीं है।

तू नहीं तो जिंदगी नहीं,

 यह पागलपन मेरे अंदर नहीं।


तुझे देखने को तरसें मेरी निगाहें,

बार-बार मरना प्यार में मेरी फितरत नहीं है।


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