तू कौन है ?
तू कौन है ?
तू कौन है?
जो अभी अभी
आया है
प्रचंड वेग से
आते ही
तबाही मचाया है
चारों ओर घोर
अंधेरा छाया है
चीख पुकार
हर तरफ
मौत का
मंजर छाया है
कल सब सामान्य था
मानव भी
अपने को ख़ुदा
समझने लगा था
उसे अपनी सुध
कहाँ था
तुम्हारे अंदर
इतना क्रोध क्यूँ है
क्यूँ मानव को
इस धरा से
उखाड़
फेकना चाहते हो
क्यूँ उसकी भूल को
माफ़ नहीं करते
तुम्हारे अंदर दया
नहीं क्या?
मैंने मानव को
जीवन दिया
खुद घुट घुट कर
जिया
इसी ने हमें नष्ट
करने के
लिए जहर दिया
मेरे तन पर प्रहार किया
जब चाहा मेरे
घर को उजाड़
दिया ,इसने
मेरे बच्चों
तक को नहीं बख्शा
उन्हें भी
मौत दे दिया
प्यास से व्याकुल
बच्चे बिन
पानी के
मर गए
निस्वार्थ ही मैंने
अपने तन को जला कर
इन्हें हर मौसम
में फल खाने को दिया
भले अपने बच्चों
को भूखा सोने दिया
बारिश के बिन
जब यमकी फासले
सूखी, तब भी
अपने तन से
वाष्प बनाकर
जल को बारिश
होने बादल के
पास भेजा
मेरे अंदर दया नहीं
मेरे दिल में करुणा नहीं
क्षमा नहीं, जो इन्हें
सदियों से करता ही
आया हूँ
कभी अपनी पीड़ा
इन्हें खोलकर
दिखाया नहीं
मेरी आवाज़
इन्हें सुनाई नहीं
देती
नहीं इन्हें मेरी
पीड़ा की कराह
की वेदना की
अनुभूति नहीं होती
इन्हें दीखता है
इनका स्वार्थ
इनका सुख
वैभव, सम्पत्ति
जिसका मूल्य
मेरे अस्तित्व से
अधिक है
मैं इसी क्रोधाग्नि
में सदियों से
जलती आई हूँ
पूछते हो मैं कौन हूँ
तुम्हें मृत्यु दान
देती आयी हूँ
तुम्हारी हर पीड़ा की दवा
मैं बन आयी हूँ
तुम्हारे हर साँस
की वायु हूँ
तुम्हारे तन के
स्नायु हूँ
तुम्हारे जीवन नीव
जिस पर टिकी है
जिसको सदियों से
मैं अपने सिर पर
लिए खड़ी हूँ
तुम्हारे आस पास
बिखरी फिजाओ
में रची बसी हूँ
अनुभूति करो मूढ़ मानव
मैं प्रकृति हूँ ,मैं तुम्हारी
अभागिन माँ
जो हर पीड़ा को
सहते हुए भी
अपने पुत्रों को
पीड़ा से कराहते
नहीं देख सकती
वहीँ अभागिन माँ हूँ
मैं प्रकृति हूँ
मैं प्रकृति हूँ
मैं वही अभागिन माँ
जिसके पुत्र कुपुत्र
हो चुके है
अपने ईमान खो
चुके हैं
मेरा पालन ये क्या
करेंगे, इनके
आँखों के
पानी भी
सूख चुके है
इनकी अभागिन माँ हूँ
मैं प्रकृति हूँ
मैं ही इनकी माँ हूँ