तू ही मेरा मनरंगी
तू ही मेरा मनरंगी
जब-जब तुम्हारी आँखों की सरगोशियाँ छूती है मेरे अहसास को
मेरी साँसें सुलगने लगती है।
कुछ होश में कुछ बेहोशी में तेरे नाम का ही मैं सजदा करती हूँ,
सारे अरमाँ बिलखने लगते है।
तू हमसाया तमन्नाओं का तेरे आगे ही सर मेरा झुकता है,
पाने का जुनूँ शिद्दत से जगता है।
इश्क की आतिश गहराते तेरी ओर ही मुझको खिंचती है
लगे तू ही मेरा मनरंगी है।
आरज़ू नहीं तेरे जिस्म की तेरी रूह में मुझको बसने दे
तेरी चाह में ही दिल उलझा है।
ये कैसा मन को उन्स हुआ महसूस मुझे उस पल तू हुआ
तू मुझको मसीहा लगता है।
हर हथेलियों में नेमत की लकीरें होती है
होगी रोशन अपनी भी किस्मत मन यही सोचकर बहलता है।
डूबी हूँ तेरे खयालों में खुद का मुझको होश नहीं,
माझी मेरे कुछ तो बता क्यूँ मन तेरे लिए ही तड़पता है।