तू और तेरा साथ
तू और तेरा साथ
जिंदगी का हर सफर भी सुहाना है।
तेरे संग का हर गीत गुनगुनाना है।
तुझे खामोशी में सुनकर,मैने खुद को जाना है।
प्रियतम तेरे संग को,जब से मैंने पहचाना है।।
अब खामोश नही है पल,कुछ गुनगुनाते जाते है।
अपने हर कदमों पर,तुझे संग संग जब पाते है।।
लहरों की कल कल, मन को कितना लुभाती है।
तेरे ही अद्भुत रूप को,जब इसमें लहरों में, पाती है।।
बचपन की किलकारियां,जब जब उर तक जाती है।
तेरी महक,मेरे कण कण को कितना महका जाती है।।
पुष्पों का मुस्काना भी,मुझे कितना सहला जाता है।
जब कभी कंटकों में पग मेरा,सहसा आ भी जाता है।।
बतिया लेती हूं मैं तो वृक्ष,लताओं से भी कभी कभी,
इनमे भी तो,मैं तेरा ही दर्शन मैं,इनमे जो पाती हूं।।
शायद सोचते है ये दुनिया वाले, गमों के मेरे अंत नही,
पर उन्हें क्या पता,इन गमों में भी,तेरे संग गुनगुनाती हूं।।