वो राह निहारे
वो राह निहारे
देखो कैसे टकटकी लगाए बैठी है वो
उस सड़क पर उसके घर की ओर आती है जो
वैसे तो ये भीड़ भरी सड़क शहर की जान है
पर फौजी की पत्नी के लिए वो सड़क सुनसान है
दिल में आस लिए बैठी है कि वो दिन जल्द आयेगा
जब उसका प्राणप्रिय इसी सड़क से दौड़ता आयेगा
उस दिन वो एक बार फिर दुल्हन सी सजेगी
फिर से माथे की बिंदिया और हाथों की मेंहदी महकेगी
यकीन तो है कि वो घर जरूर आएगा पर
ये खबर नहीं है कि खुद आएगा या तिरंगे में लाया जाएगा