किसान का पसीना
किसान का पसीना
किसान का पसीना चमकता है
धूप में सोने सा वो दमकता है
जितना ज़्यादा पसीना बहता है,
उतना ही ज़्यादा मेघ बरसता है
ये पसीना गंगाजल तो नहीं है,
धरती को ये बड़ा प्यारा लगता है
किसान का पसीना चमकता है
दुष्टों को इसमे से दुर्गंध आती है,
देवों को इसमे से खुश्बु आती है,
ये पसीना वो ही पसंद करता है
जो मेहनत को ख़ुदा समझता है
ये पसीना जब तक बहता रहेगा,
धरती से हमे अन्न मिलता रहेगा,
इस पसीने से अन्न निपजता है
ये ख़ुदा की सबसे प्यारी चीज है
इससे उपजा मेहनत का बीज है
इस पसीने में यहां नहानेवाला ही,
कोई इंसान वाकई इंसान बनता है
किसान का पसीना चमकता है