मौन
मौन
मौन के पल दो-चार सही पर संवादों पर भारी लगते हैं,
शब्दों के सारे रंग ही मुझको अब दुनियादारी लगते हैं।
स्वजनों की बस्ती में शब्दों की फनकारी ठीक नहीं,
हृदयों की होली में शब्दों की पिचकारी ठीक नहीं।
नेह-बाग में शब्द-भ्रमर की गुनगुन बाधा लगती है,
लगे प्रेम का दूत मौन पर शब्द शिकारी लगते हैं।
वाणी के विष-तीर ने जिसके कोमल मन पर वार किया हो,
उसको कलरव क्यों भाये, जिसे नीरवता ने प्यार किया हो।
सूरज, चाँद, सितारों को रिश्वत दे अपने घर रख लो,
एक अँधेरे कोने के, मुझे, सूनेपन ही फबते हैं।
बाजारों की गुणा-गणित ने जिनको कर बाजार दिया है,
या फिर उन्नति के चस्के ने जिनके हृदयों को मार दिया है।
उन्हें शहर की सड़कों पर, हँसने से मैंने कब रोका?
मेरे आँसू हृदयों की हालत पर सदा बरसते हैं।