आत्मसम्मान (एक बेटी का)
आत्मसम्मान (एक बेटी का)
एक बेटी के न्याय का सफर लिखना चाहती हूँ,
एक घायल रुह की चीत्कार लिखना चाहती हूँ
मैं, शब्द नहीं हकीकत लिखना चाहती हूँ।
उस मां का आंचल भी तो रोता होगा,
पिता का मान भी कहां सोता होगा,
बेटी के मान की जो बात थी,
उनकी आस का सम्मान लिखना चाहती हूँ,
शब्द नहीं हकीकत लिखना चाहती हूँ
बस,अब कोई अत्याचार ना हो,
कोई जुल्म और प्रहार ना हो,
मृत या अधजली ना पायी जाए,
रास्ते या कचहरी में ना लायी जाए
नारी हूँ नारी का अभिमान लिखना चाहती हूँ,
शब्द नहीं हकीकत लिखना चाहती हूँ।।
