अंधेरे में उजाला
अंधेरे में उजाला
हर अंधेरे में रोशनी है
हर पत्थर में जिंदगी है
वो ही तलाश पाता है,
जिसकी नजर घनी है
वो ही अक्सर रोता है,
वो ही आँसू खोता है,
खाता जो तम का हनी है
हर अंधेरे में रोशनी है
वो तम को उजाला बनाता
जिसकी भीतर लौ चली है
वो रोशनी से तम फैलाता,
जिसकी रूह झूठ की बनी है
चलेगा यहां वो चराग़,
जो करेगा सत्य से प्यार,
वो दीया बुझ जाता है,
जो असत्य की मनी है
वो ही बनता सितारा है,
जो बढ़ाता भाईचारा है,
वो तारे टूट कर गिर जाते,
जिसके हृदय में तनातनी है
वो वीराने में महकते है,
हर महफ़िल में चहकते है,
जो यहां सत्य का धनी है
हर अंधेरे में रोशनी है