सोच
सोच
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खिलेंगे जब बागो में गुल
हम होंगे ख़ुशी में मशगूल
चमकेंगे सितारे गगन
सब रहेंगे काम में मगन
बहेंगी नदियों में अमृत धारा
सुखी होगा संसार सारा
होंगी बोलने की आज़ादी
मनपसंद खाने की आबादी
पहनेंगे कपडे अपने अपने
साकार होगा सब के सपने
लिखेंगे जो लिखना चाहे
आमदानी मिलेंगी प्रति माहे
नहीं बनेगा ये अपने आप
सहना पड़ेगा कई ताप
सोचना बनकर स्वाधीन
सोच रखती किसी के आधीन
करते रहो सोच में सुधार
नई रखो काम की धार
बने सोच में दूसरे का दास
रहना पड़ेगा हर दिन उदास
आज़ादी कभी मिलती नहीं
होती है दिमाग में वही
खिलेंगे तब बागो में गुल
सोचेंगे जब खुद के मुल !