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Neeraj pal

Abstract Inspirational

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Neeraj pal

Abstract Inspirational

तुमसे प्रीत लगाई।

तुमसे प्रीत लगाई।

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पाप अनेकों किए हैं गुरुवर, कैसे सम्मुख आऊँ मैं।

जानबूझकर भी कर बैठा, कैसे मुुख दिखलाऊँ मैं।।


 संसार की चकाचौंध ने, ऐसा मुझ पर जादू डाला।

 मोह- माया से ग्रसित होकर काया को गंदा कर डाला।।


बुद्धि में अज्ञान भरा था ,ज्ञान को कभी समझ ना पाया।

विवेक -शून्य होकर मन ने ,जैसा चाहा वैसा करवाया ।।


इस देवासुर संग्राम में हरदम, असुरों ने ही राज्य जमाया।

शतपथ की तो बात ही छोड़ो तम, रज ने ही डंका बजाया।।


अब हार चुका हूँ इन असुरोंं से ,अशांति है मन में छाई।

छल, कपट पूर्ण ,झूठे बंधन से होने लगी अब रुसवाई ।।


अब तुम ही बताओ हे ! प्राण  दाता, किस दर पर अब शीश झुकाऊँ।

 नेक राह पर चलना चाहता ,कैसे अपने को समझाऊँ।


अनेक अधमों को तारा तुमने, कितनों ने शरण है पाई।

बस एक प्रार्थना है "नीरज" की ,तुम से ही है प्रीत लगाई।।


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