STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Abstract Others

4  

Bhavna Thaker

Abstract Others

तुमसे ज़्यादा अज़िज नहीं

तुमसे ज़्यादा अज़िज नहीं

2 mins
610

'तुमसे ज़्यादा अज़िज कुछ तो नहीं'

उस अर्श तक चलना है मुझे तुम्हारा हाथ थामें

मोक्ष की क्षितिज जहाँ आत्मा से मिलती है..


"कहो चल पाओगे मेरे सम्मान को अपना गुरूर बनाकर" 


मेरे फैसलों पर अपने विश्वास की नींव रखकर

मेरी हंसी में अपने लबों की नमी रखोगे अगर हाँ तो, 

मैं सरताज समझकर तुम्हें पूजती रहूँगी..


सहरा या शूल सी न समझना फूलदल सी नाजुक हूँ

ज़ख़्मों की आदी नहीं प्रेम से लदी हूँ,

क्या सहज पाओगे सीप में मोती सी अगर हाँ तो, 

समेट लो मुझे सराबोर तुम्हारी हूँ 


मेरे हर कदम को अपने वजूद की छाँव देकर जो चलोगे तुम अगर हाँ तो, 

मैं हर धूप तुम्हारे हिस्से की ओढ़ लूँगी..

 

समझ सकोगे अनकही मेरी बातों के तथ्यों को मेरी आँखों की भाषा पर

अपनी धड़कन का धड़कना पहचान पाओगे अगर हाँ तो, 

संपूर्ण समर्पित मुझे पाओगे..


जुदा नहीं मैं तुमसे आधा अंग हूँ 

पसीजते मेरे अहसासों की तपिश के संग अपने अहसासों को सेक पाओगे अगर हाँ तो,  

थामो हाथ मेरा चलो साथ-साथ चलें..


मुश्किल नहीं मुझे समझना हल्का सा हक और सम्मान की रिश्वत पर

अपना सब कुछ वारने का हुनर जानती हूँ दे पाओ इतना? अगर हाँ तो, 

मैं ताउम्र नतमस्तक होकर जीना जानती हूँ..


अहं और अकड़ मुझमें भी है तुमसे भी ज़्यादा पर तुमसे ज़्यादा अज़िज नहीं,

तुम्हारे आगे अपना सब कुछ हारना जानती हूँ मैं।

"कहो अब तो चलोगे न मेरे संग उस अर्श की चौखट तक?

अगर हाँ तो मैं खुद को तुम्हें सौंपती हूँ"



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract