तुम्हें ढूँढ़ते हैं
तुम्हें ढूँढ़ते हैं
तुम्हें तस्वीरों में ढूँढ़ते हैं ,
कभी तदबीरों में ढूँढ़ते हैं,
इन बेबस निगाहों का क्या ,
रह रह कर तुम्हें हर गली ,
हर चौराहे पे ढूँढ़ते हैं।
सूरज से चाँद तक ढूँढ़ते हैं ,
तारों भरी सर्द रात से ,
सुहानी , नरम सुबह तक ढूँढ़ते हैं,
लहलहाते धान से ,
खनकती बाजरे की खान तक ,
इन लाचार निगाहों का क्या,
तुम्हें हर उलझी -सुलझी बातों में ढूँढ़ते हैं ,
इन बेबस निगाहों का क्या ,
रह रह कर तुम्हें हर गली,
हर चौराहे पे ढूँढ़ते हैं।

