तुम्हें बदनाम कर दूंगा....
तुम्हें बदनाम कर दूंगा....
तुम्हारी बेवाफ़ाई का, मैं क़िस्सा आम कर दूंगा,
समझती हो तुम्हें यूँ ही, कि मैं बदनाम कर दूंगा,
न लूंगा नाम तेरा भूलकर भी फिर मेरे मन में,
वफ़ाएँ प्यार में की थी, वफ़ाएँ खास कर दूंगा।
तुम्हें फुरसत नहीं है अब, तो क़त्लेआम करने से,
अभी मशगूल रहती हो, जश्ने, जाम, महफ़िल में,
निगाहों में कभी तेरी हमीं शिरकत किया करते,
अभी शिरकत से डरती हो, कि महफिल खास कर दूंगा।
हमारे बिन गुज़रता था, कभी न शाम हो या दिन,
अभी सब भूल बैठे हो, हंसी सारे जो थे पल छिन ,
तुम्हारी ज़िन्दगी तो राह पर सरपट ही है ज़ालिम,
न देखो लौट कर पीछे, खुद को गुमनाम कर दूंगा।
सदा शर्माती रहती थी, मेरा कोई नाम लेता था,
वो मेरा है ये कहती थी, मेरी कोई बात करता था,
अभी किसका हूँ मैं ये फर्क पड़ता है नहीं तुमको,
अभी किसी का नहीं होके, मैं तेरे नाम कर दूंगा।