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Vandana Singh

Tragedy

3  

Vandana Singh

Tragedy

तुम्हारी यादें

तुम्हारी यादें

1 min
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बचपन की कुछ यादें याद आती है

भूली-बिसरी कुछ यादें याद आती है


वो हमारा लड़ना, रूठना

और फिर एक ही बिस्तर पर मुहँ फेर कर सो जाना


वो तुम्हारा चुपके से मेरी फिक्र करना

मेरे लिय सारे घर से लड़ जाना

मेरा चुपके से तुम्हारे नये कपड़े पहन भाग जाना


स्कूल में मेरी शरारतों पर तुम्हे डांट पड़ना

वो हमारा हँसना, रोना, संग-संग सब कुछ सहना


जाड़े की रातों में रजाई में जगकर धीरे-धीरे बातें करना

दूर जाकर एक-दूसरे को चिठ्ठियाँ लिखना और पढ़कर आँखे भिगोना


सब पर अब एक स्वप्न सा है

सोचती हूँ पागल मैं

काश एक बार तुम्हे देख पाती

कुछ अनकही बातें

काश तुमसे कह पाती


तुम जो लिखा करती थी

मैं संकोची वो दोहरा पाती

"फूलों का तारों का सबका था कहना

एक हजारों में मेरी थी बहना"


पर यादें लौटकर आती नहीं,और

ईश्वर के पास कोई चिठ्ठी जाती नहीं।


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