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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract Tragedy Inspirational

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract Tragedy Inspirational

जिंदगी से जो लड़ बैठा है

जिंदगी से जो लड़ बैठा है

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अलख जगी संकल्प बना,

जीवन एक विकल्प बना।


उल्फत हुईं संगति में जगी,

अग्निपथ एक ज्वाला बनी।


न डरा न डरने दिया कभी,

लथपथ सांसें कारवां बनी।


न इधर न उधर गया पथ राही,

सीधी पगडंडी रास्ता बनी छाईं।


जिधर भी देखा नैन घुमाई,

कहां दुनिया तरक्की पाई।


एक बात सीखी जगहंसाई,

कोई‌ न समझे पीर पराई।


जिंदगी से जो लड़ बैठा है,

जग में आदमी वही पैदा है।


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