तुम्हारी कसम
तुम्हारी कसम
तुम्हारी कसम
पता ही न चला
कब ज़िदगी बदल गयी,
तुम्हारी कसम
इन तरसती आँखों को
तुम्हारी ज़रूरत पड़ गयी। तुम्हारी कसम
मैं महसूस करती हूँ
अपने हाथों में तुम्हारी नरमायी,
तुम्हारी कसम
तुम ही हो मेरी
हर बात की गहरायी।
तुम्हारी कसम
हर आहट न जाने
क्यों देती है तुम्हारी दस्तक,
तुम्हारी कसम
तुम्हारे ही लिये
इंतज़ार में बैठी हूँ अब तक।
तुम्हारी कसम
तुम ही हर रात
आ जाते हो सपनों में,
तुम्हारी कसम
कैसे बता दूँ
अब बस तुम ही हो अपनों में।
तुम्हारी कसम
ये दिल तुम्हारे
लिए ही धड़कता है,
तुम्हारी कसम
तुम्हारा न आना
इस दिल को अखरता है।
तुम्हारी कसम
तुम से ही अब
ये दिन ये रातें हैं,
तुम्हारी कसम
तुम्हारे बिना
हर पल मुझको काटे है।
तुम्हारी कसम
न रोको मुझे
अब तो पास बुला लो,
तुम्हारी कसम
इस सफर का
अपना साथी बना लो।
तुम्हारी कसम, तुम्हारी कसम

