तुम्हारे बंधन में
तुम्हारे बंधन में


मृगनयनी बन घूम रही मैं,
तेरे मन के आँगन में।
जाने तुम क्यों ढूंढ रहे हो
मुझको अपने मरुथल में।
पुरवाई भी लेकर आयी,
भोर सुहानी जीवन में।
कस्तूरी सी मैं तो महकूँ,
तेरे मन के आँगन में।
मृगनयनी बन घूम रही मैं,
तेरे मन के आँगन में।
जाने तुम क्यों ढूंढ रहे हो
मुझको अपने मरुथल में।
ख्वावों की ताबीर लिये मैं
&nb
sp; सोच रही मन ही मन में।
नदिया सी चंचल थी मैं
अब बंधी तुम्हारे बंधन में।
मृगनयनी बन घूम रही मैं,
तेरे मन के आँगन में।
जाने तुम क्यों ढूंढ रहे हो
मुझको अपने मरुथल में।
एक बार गर देख ही लेते,
अपने मन के उपवन में।
हरसिंगार हो जाता मन,
छाता बसंत फिर जीवन में।
मृगनयनी बन घूम रही मैं ,
तेरे मन के आँगन में।
जाने तुम क्यों ढूंढ रहे हो
मुझको अपने मरुथल में।