अनुपम घाटी
अनुपम घाटी
देखा जब मैंने घाटी को
अद्भुत स्वर्गिक आनंद मिला।
हिम आच्छादित चाँदी बिखरी,
शिखरों पर सोना मढ़ा मिला।
नदियों, झरनों के गुंजित स्वर में,
घाटी का मधुरिम संगीत मिला।
देखा जब मैंने घाटी को
अद्भुत स्वर्गिक आनंद मिला।
शिखरों पर चढ़ सूरज ने जब,
सतरंगी छटा बिखेरी है।
यूं लगा कि जैसे नभ ने
टोली पारियों कि भेजी है।
तरुवर शाखाएँ मिल – मिल कर
ज्यों नृत्य कर रही हिलमिल कर।
मोहक श्रंगारिक रूप मिला।
देखा जब मैंने घाटी को
अद्भुत स्वर्गिक आनंद मिला।
देखा था कभी जो सपनों में,
सम्मुख पा उसको हुआ विह्वल।
वो शोर –शराबा कोलाहल छूटा,
मन में छाई है शांति अचल।
अनुभूति, सुखद, निर्मल शीतल
हो रही प्रवाहित अंत:स्थल।
सितारों जड़ा नीला अम्बर,
जैसे रस, छन्द भरा नव गीत मिला।
अनुपम आलंकारिक घाटी में
अद्भुत स्वर्गिक आनंद मिला।
देखा जब मैंने घाटी को
अद्भुत स्वर्गिक आनंद मिला।