मन का गीत
मन का गीत
एक गीत लिखूँ मेरे मन का,
जिसमें संगीत हो जीवन का।
ओढ़ कर लाल चूनर सुबह आ गई,
मोती शबनम के भी चमकने लगे
सारी कलियाँ चटक कर गुलाब हो गईं
आरती के स्वर भी बिखरने लगे
स्वर सुनाई दे मिझको आज़ान का।
एक गीत लिखूँ मेरे मन का,
जिसमें संगीत हो जीवन का।
नदियों का प्यासा रहे न एक कण
बादलों को भेजो स्नेह निमंत्रण।
धरती हरी चादर को ओढ़े
पर्वत भी अपनी जगह न छोड़े।
संगीत सुनूँ मैं झरनों का।
एक गीत लिखूँ मेरे मन का,
जिसमें संगीत हो जीवन का।
खिलती कलियों का यह सुंदर वन
महक रहा जिनसे उपवन
कच्ची कलियों को गर कोई तोड़े
काँटों से घायल हो उसका तन
कानों में पड़े स्वर न क्रंदन का।
एक गीत लिखूँ मेरे मन का,
जिसमें संगीत हो जीवन का।
सागर की लहरों पर अक्सर
नैया हिचकोले है खाती।
पार उतरने की कोशिश में
भंवर जाल में फँसती जाती
उतरेगी नौका पार वहीं
जिसमें समान हो सत्कर्मों का।
एक गीत लिखूँ मेरे मन का,
जिसमें संगीत हो जीवन का।