किराये का घर
किराये का घर
मैं किराए के घर में रहती हूँ
इसका किराया चुका रही हूँ।
निरंतर बिना नागा
इसको सहेजती हूँ ,सजाती हूँ
अपने घर की तरह सँवारती हूँ।
लेकिन अब यह कमजोर होने लगा है
चाहे जितनी मरम्मत करवा लूँ।
यह टूटेगा ही एक दिन
या शायद धड़ाम से गिरे,
मगर गिरेगा जरूर।
कोई नहीं बचा पाएगा
तब मुझे नये घर में जाना होगा
सारा माया-मोह त्यागना होगा
हाँ ! जाना ही होगा
इस नश्वर घर को छोड़कर।