तुम्हारा शहर बनारस और मैं
तुम्हारा शहर बनारस और मैं
कुछ बात तो है तुम्हारे बनारस में
जो मुझे ये अपना ना होकर भी
अपना सा लगता है
कुछ बात तो है इस शहर की हवा में
जो की इसने मुझ पर ना जाने कैसा जादू किया है
इस शहर ने मुझे पूरी तरह से बदल दिया है
मुझ बड़े शहर की अल्हड़ सी लड़की को
शांत और शालीन बना दिया है
मुझ जैसी बिगड़ैल को भी
इस शहर ने बेइंतेहा प्यार दिया है
डिस्को और क्लब में देर रात तक
पार्टी करने वाली लड़की को
अब दशाश्वमेध की गंगा आरती
और अस्सी घाट पर मां गंगा के किनारे
सुकून अच्छा लगने लगा है
ना जाने कैसे मिनी स्कर्ट और
जींस पहनने वाली लड़की
अब हमेशा सलवार सूट और
साड़ी पहनने लगी है
ना जाने कैसे मगर सुबह देर तक
सोने वाली वो लड़की
अब सुबह ए बनारस से प्यार करने लगी है
वो लड़की जो भगवान को नहीं मानती थी
वो खुद आज बाबा विश्वनाथ के
दर्शन के लिए जाती हैं
हमेशा अपने खाने में से
तेल मसाले को दूर रखने वाली
वो लड़की अब रोज सुबह चाव से
कचौड़ी जलेबी खाती हैं
इस शहर से इतना प्यार और
अपनापन मिलने के बाद भी
बस एक बात है जो मुझे सताती है
कि ये शहर कितना और अच्छा लगता अगर
तुम भी मेरे साथ होते
शायद यही वजह है कि ये शहर मुझे इतना
अपना सा लगता है क्योंकि
अब भले ही तुम नहीं हो मेरे साथ मगर
इस शहर की हवा में मुझे तुम्हारे होने का
एहसास होता है
हां, शायद यहीं वजह है कि
तुम इस दुनिया में ना होकर भी
बनारस की इस हवा में मेरे साथ रहते हो...

