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ritesh ranjan

Romance

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ritesh ranjan

Romance

तड़प

तड़प

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मैं हवा हूं तुम्हारी मोहब्बत का

बोलो जरा सा फिर से थम जाऊँ क्या

तू जो गुजर रहीं हो किसी अजनबी की

तरह छू कर मुझे 

जी करता मैं तुम्हें छू कर मर जाऊँ क्या


कर रही तलाश तू हर रोज जिस मंज़िल की

क्या उसी मंज़िल का मुसाफिर बन जाऊँ क्या


अगर हो ना तकलीफ़ तुम्हें खुद से तो बोलो

जी चाहता है उसी मंज़िल का राही हो जाऊँ क्या


बुझ जाती प्यास भी तेरी कोमल होठों की

शबनम बन के लबों पे ठहर जाऊँ क्या


मैं भी बहुत प्यास हूं सदियों से यहां 

दिल करता है तेरी आँखो का आँसू पी जाऊँ क्या


तू जो हर पूजती हो मंदिरों में का जा कर

बोलो क्या उसी मंदिर का पत्थर बन जाऊँ क्या


जो छूकर गुजरती हो हर रोज उन पत्थरों को

क्या उसी पत्थर से निकाल कर फिर से तुम्हें दिख 

जाऊँ क्या


ना जाने अब क्यों छोड़ दी अब मंदिर भी जाना तू 

बोलो तेरे आंगन का ही तुलसी बन जाऊँ क्या  

  

 तू जो रोज खरी रहती हो तन्हा सहिलों पे जा के 

आके वहीं तेरी लबों कि प्यास मिटा जाऊँ क्या


जो खुद को तन्हा कर पद्धति हर रोज उन यादों को

क्या उन्ही यादों का किताब बन जाऊँ क्या


अब तो बिखर रहा हूं मैं भी पंखुड़ियों की तरह

बोलो तेरे बाहों में आकर संवर जाऊँ क्या


रोज जो ढूंढती हो मुझको ख्वाबों में अपनी

क्या उसी ख्वाबों का हकीक़त बन जाऊँ क्या


अब दिखता नहीं तेरा चेहरा इन आईनों में भी

बोलो पत्थरों पे गिर के बिखर जाऊँ क्या


आज जो बैठी हो अकेली किनारों पे जाकर

जी चाहता है लहर बन के फिर तुम्हें छू जाऊँ क्या


रोज जो झांकती हो उन खिड़कियों से आसमां तले

बोलो तेरे आँखो का नूर बन कर उतर जाऊँ क्या


अब खुद तड़प कर भिंगाती जो अपने ही अश्क से

खुद के जिस्म को

जी चाहता बारिश की बूंद बन कर नहला जाऊँ क्या


ना जाने क्यों फेकती हो ठहरे पानी में कंकर

क्या उसी पत्थर से मोती बन कर निकाल जाऊँ क्या


अब जल रही होंगी बदन भी तेरी धूप में बैठे बैठे

घटा बन के आसमां में फिर से छा जाऊँ क्या


अगर ना हो यकीन इस पाक मोहब्बत पे तो बोलो 

क्या जिंदा लाश की तरह तेरे सामने जल जाऊँ क्या



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