ग़म
ग़म
जब से मंजिलें हुई हमारी अलग हमसे
तब से तो ये रास्ते भी अलग होने लगे
तुम इस कदर दूर हो गई हो आज मुझसे
जैसे कि लहरों से किनारे अलग होने लगे
अब कहा रहा वो सादगी उन बागों की
जब से फ़ूलों से खुशबु भी जुदा होने लगे
अब क्या बताए अपने दिल का दर्द ये हिज्र
जब खुद ही ख़ुद से मिलकर अब डरने लगे
तन्हाई कुछ इस कदर छाई मेरे जिंदगी पर
कि पेड़ों के नीचे भी धूप से जलने लगे
कहा सुकून ढूंढे खुद को खुश करने के लिए
यहां तो अपने लोग भी मुझे गैर कहने लगे
सोचा बहला लू अपने दिल को कुछ यूँही लिखकर
अब तो हर अल्फाज में भी तेरा जिक्र करने लगे
यक़ीन तुम्हें भी हो जाय कि आज भी चाहता हूं तुम्हीं को
तभी तो हर किसी से मिलकर भी अजनबी होने लगे।