STORYMIRROR

ritesh ranjan

Romance

4  

ritesh ranjan

Romance

ग़म

ग़म

1 min
624


जब से मंजिलें हुई हमारी अलग हमसे 

तब से तो ये रास्ते भी अलग होने लगे 


तुम इस कदर दूर हो गई हो आज मुझसे 

जैसे कि लहरों से किनारे अलग होने लगे 


अब कहा रहा वो सादगी उन बागों की 

जब से फ़ूलों से खुशबु भी जुदा होने लगे 


अब क्या बताए अपने दिल का दर्द ये हिज्र 

जब खुद ही ख़ुद से मिलकर अब डरने लगे 


तन्हाई कुछ इस कदर छाई मेरे जिंदगी पर 

कि पेड़ों के नीचे भी धूप से जलने लगे 


कहा सुकून ढूंढे खुद को खुश करने के लिए 

यहां तो अपने लोग भी मुझे गैर कहने लगे 


सोचा बहला लू अपने दिल को कुछ यूँही लिखकर 

अब तो हर अल्फाज में भी तेरा जिक्र करने लगे 


यक़ीन तुम्हें भी हो जाय कि आज भी चाहता हूं तुम्हीं को 

तभी तो हर किसी से मिलकर भी अजनबी होने लगे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance