हालात मुल्क की
हालात मुल्क की


हमारे शहरों में अज़ीज़ अब बहुत कम मिलते हैं
हर घर के सामने अब बहुत से फकीर मिलते है
जिनको खुद पता नहीं अपनी मंज़िल का रास्ता
आज हमको रास्ता बताने घर से बाहर निकलते हैं
पहले मिलते थे हर मोड़ अपने दोस्त मुझे
अब इन हालातों में दुश्मन ज्यादा और दोस्त कम मिलते है
कल तक जो पूछते थे परेशानियों हमारे, दिल के दर्द
आज वो हमसे हमारी पहले जाती धर्म पूछते है
जिन हाथों से कल बनी इस मुल्क की रास्ते
आज उन्ही सड़को पे अपनों के लाश मिलते है
जो कल तक सजती थी हमारी घर की दीवारें जिन हाथों से
अब उन्ही के जिस्मों से यहां हर रोज खून निकलते हैं
जो हर रोज गरीबों को दिल से सुनकर दिमाग से बोलते थे
आज उन्ही के पाँव संसद से बाहर नहीं निकलते हैं
कैसे माफ़ करेगी दुनिया तुझे इनके साथ ना इंसाफी पे
जिनके पैर भी नहीं है इन हालातों में वो भी
पैदल घर की और निकलते है