तुम जीत गए मैं हार गई
तुम जीत गए मैं हार गई


दो विपरीत ध्रुवों सा
जीवन अपना
साजन यूँ ही बीत गया।
तुम अपने धरातल से
बंधे रहे
मैं अपने बांधों में
सिमटी रही।
तुम वक्त के प्रवाह संग
बहते रहे
मैं वक्त के साथ
न चल सकी।
तुमने पाया हर
स्वरुप मुझमें
मैं तुममें कृष्ण
न पा सकी।
धूप छाँव के
इस खेल में साजन
तुम जीत गए,
मैं हार गई।