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Vandana Gupta

Romance

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Vandana Gupta

Romance

विदा करो मुझे

विदा करो मुझे

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410


किस शून्य में

छिप गए हो

कहाँ कहाँ ढूंढूं

किस अंतस को चीरूँ

जब से गए हो मुहँ मोड़कर

प्रीत की हर रीत तोड़कर

किस पथ को निहारूं मैं

कैसे बाट जोहारूं मैं


तुम तो मुख मोड़ गए

मुझे अकेला छोड़ गए

अंखियन ने बहना छोड़ दिया है

ह्रदय का स्पंदन रुक गया है

तुम्हारे वियोग में प्रीतम

अंतस मेरा सूख चुका है


वो तेरा रूठ कर जाना

फिर बुलाने पर भी ना आना

जीवन को ग्रहण लगा गया है

कैसे भीगी सदायें भेजूं

किन हवाओं से पैगाम भेजूं

कैसे ख़त पर तेरा नाम लिखूं

लहू भी सूख चुका है अब तो


निष्क्रिय तन है अब तो

सिर्फ़ साँसों की डोर है बाकी

विदाई की अन्तिम बेला है

और आस की डोर कहीं बंधी है

तुम्हारे मिलन को तरस रही है


तेरे दीदार की खातिर

ज़िन्दगी मौत से लड़ रही है

हर आती जाती साँस के साथ

अधरों पर

तेरे नाम की माला जप रही है

निश्चेतन तन में कहीं

कोई चेतना बची नही है

इक श्वास ही कहीं

अटकी पड़ी हैतेरे विरह में कहीं

भटक रही है


अब तो आ जा

अब तो आ जा

मुझे एक बार फिर से

अपना बना जा

मेरी विदाई को

मेरा इंतज़ार न बना

शायद यही सज़ा है मेरी


आह ! नहीं आओगे

लो चलती हूँ अब

विदा करो मुझे

मेरे इंतज़ार के साथ

आस भी टूट गई

रूह भी पथरा गई

और साँस थम गई।


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