यादों ने दस्तक दी है
यादों ने दस्तक दी है
पूरा चाँद था उस दिन
जिस दिन हम मिले थे
याद है ना तुम्हें
और आसमाँ में आषाढ़ की
काली कजरारी बदली छाई थी
जिसने चाँद को
अपने आगोश में
धीरे धीरे समेट लिया था
और चाँद भी
बेफिक्र सा उसके
आगोश में सो गया था
जाने कब की थकान थी
जो एक ही रात में
उतार देना चाहता था
और उस सारी रात
हमने भी एक सफ़र
तय किया था
दिलों से दिलों तक का
रूह से रूह तक का
जहाँ जिस्म से परे
सिर्फ आँखें ही बोल रही थीं
और शब्द खामोश थे
पता नहीं क्या था उस रात में
ना बात हुई ना वादा हुआ
मगर फिर भी कुछ था ऐसा
क
ि जिसने मुझे आज तक
तुमसे जोड़ा हुआ है
शायद ...तुम भूल गए हो
मगर वो प्लेटफ़ॉर्म पर
सुबह के इंतज़ार में
गुजरती रात आज भी
मेरे वजूद में ज़िन्दा है
सुबह तो सिर्फ जिस्म
वापस आया था
रूह तो वहीं तुम्हारी
खामोश आँखों में ठहर गयी थी
कभी कभी अहसास
शब्दों के मोहताज़ नहीं होते
और कम से कम
पहली और आखिरी मुलाक़ात
तो उम्र भर की जमा पूँजी होती है
शायद कहीं तुम भी आज
उस मुलाकात को याद कर रहे होंगे
तभी आज इतने वर्षों बाद
यादों ने दस्तक दी है
उन आषाढी बूंदों में आज भी
भीग रही है हमारी मोहब्बत
इंतज़ार बनकर