बताओ तो अब सुलगने को क्या बचा
बताओ तो अब सुलगने को क्या बचा


एक हसरत के पाँव में
जैसे किसी ने आरजुओं के
घुंघरुओं को बांधा हो।
उम्र के लिहाज को
जैसे किसी ने
उच्छंखल नदी में डाला हो।
रिश्ते की करवट ने
जैसे चाँद दिन में निकाला हो
मोहब्बत के चेनाब में
जैसे पक्का घड़ा उतारा हो।
कुछ ऐसे मोहब्बत का धुआँ
मेरी रूह में पैबस्त हो गया है
बताओ तो अब सुलगने को क्या बचा ?