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Vandana Gupta

Romance

4  

Vandana Gupta

Romance

तुम्हारी पहली मौसमी आहट

तुम्हारी पहली मौसमी आहट

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जानते हो

एक अरसा हुआ

तुम्हारे आने की आहट सुने

यूँ तो पदचाप पहचानती हूँ मैं

बिना सुने भी जान जाती हूँ मैं

मगर मेरी मोहब्बत

कब पदचापों की मोहताज हुई


जब तुम सोचते हो ना

आने की

मिलने की

मेरे मन में जवाकुसुम

खिल जाता है

जान जाती हूँ

आ रहा है सावन झूम के


मगर अब तो एक अरसा हो गया

क्या वहाँ अब तक सूखा पड़ा है

मेघों ने घनघोर गर्जन किया ही नहीं

या ऋतु ने श्रृंगार किया ही नहीं

जो तुम्हारा मौसम अब तक

बदला ही नहीं


या मेरे प्रेम की बदली ने

रिमझिम बूँदें बरसाई ही नहीं

तुम्हें प्रेम मदिरा में भिगोया ही नहीं

या तुम्हारे मन के कोमल तारों पर

प्रेम धुन बजी ही नहीं

किसी ने वीणा का तार छेड़ा ही नहीं

किसी उन्मुक्त कोयल ने

प्रेम राग सुनाया ही नहीं


कहो तो ज़रा

कौन सा लकवा मारा है

कैसे हमारे प्रेम को अधरंग हुआ है

क्यूँ तुमने उसे पंगु किया है


हे ...ऐसी तो ना थी हमारी मोहब्बत

कभी ऋतुओं की मोहताज़ ना हुई

कभी इसे सावन की आस ना हुई

फिर क्या हुआ है

जो इतना अरसा बीत गया

मोहब्बत को बंजारन बने


जानते हो ना ...

मेरे लिए सावन की

पहली आहट हो तुम

मौसम की रिमझिम कर गिरती

पहली फुहार हो तुम

मेरी ज़िन्दगी का

मेघ मल्हार हो तुम

तपते रेगिस्तान में गिरती

शीतल फुहार हो तुम


जानते हो ना....

मेरे लिए तो सावन की पहली बूँद

उसी दिन बरसेगी

और मेरे तपते ह्रदय को शीतल करेगी

वो ही होगी

मेरी पहली मोहब्बत की दस्तक

तुम्हारी पहली मौसमी आहट

जिस दिन तुम

मेरी प्रीत बंजारन की मांग अपनी

मोहब्बत के लबों से भरोगे ...


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