तुम हो -३
तुम हो -३


मेरी कलम जो लिखती
वो एक कविता तुम हो,
मेरी कलम का वलवला
ज़िन्दगी का मेरे अकीदा
तुम ही हो
एक तलब सी हो, सदा हो
मेरी इकलौती हसरत,
मेरा नर्गिस हो तुम ही
ज़िन्दगी की ताबीर
तुम ही हो
मेरी पाक मुहब्बत हो तुम
मेरे दिल की मल्लिका तुम हो,
मेरी रहबर भी तुम हो
सफर-ए-मुहब्बत में रहनुमा
तुम ही हो
पूरा करने, ये ज़िन्दगी वार दूँ
मेरी ऐसी एक तमन्ना तुम हो ,
मुझे इश्क़ सिर्फ तुमसे है
वज़ूद का मेरे सरमाया
तुम ही हो
रोज़ मांगी जो दुआ उम्र भर
वो एक दुआ मेरी, तुम ही हो,
इश्क़ की इबादत करता हूँ मैं
मेरा ख़ुदा तुम ही हो ।।