तुम गए कहाँ हो?
तुम गए कहाँ हो?
तुम गए कहाँ हो ?
तुम तो अब भी बसते हो मन में
जीवन के हर एक स्पंदन में
कलियों की कोमल छुअन में
टीसे उन कांटों की चुभन में
दिन के उजली रोशनी में
भीगी रात की खामोशी में
पुतली बन बैठे इन आंखों में
फूलों पत्तियों खुशबु शाखों में
पेड़ों की सरसराहट में
कदमों की आहट में
ओ रूह के वाशिंदे मेरे,
जीवन के चमकते सितारे
तुम्हीं हो प्रारब्ध तुम्हीं किनारे।