तुम और मैं
तुम और मैं
तुम बरखा की शीतल बौछार
मैं गरम पवन का झोंका हूँ।
तुमसे मैं हूँ तुम्हारा ही हूँ मैं
तुमसे अलग नहीं हूँ कुछ भी मैं।
मेरा जीवन बहती नदिया की धारा
सरल सहज सा मिलनें को आतुर।
सुरमई सी रुमानी इक शाम है तू
महकता हुआ इक हसीन नाम हूँ मैं।
तेरे जानें से वीरानी सी लगती जो
जिन्दगी की वही खुली किताब हूँ मैं।
सागर बन जब आऊँगा तुम्हारे द्वार
रहना तुम नदिया बन मिलन को तैयार।
तुम बरखा की शीतल बौछार
मैं गरम पवन का झोंका हूँ।