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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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तुम आना

तुम आना

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होकर हताश और निराश,

मन में जब न हो कोई आस,

व्याकुल व्यथित होकर सदा,

तुम आओगे जब मेरे पास।


मौन तुम्हारा मैं पढ़ लूँगी,

तुम्हारे अंतर्मन को गढ़ लूँगी,

तेरे उर की पीड़ा मिट जाए,

दोष अपने माथे मढ़ लूँगी।


तुम्हारे नैनों की दिखती पीड़ा,

खत्म हो जाये उठाऊँ बीड़ा,

उज्ज्वल चरित्र तेरा यूँ दमके,

जैसे सोने की बीच जड़े हीरा।


तेरा बन जाऊँ मैं सदा सहारा,

तुझे मझधार से मिले किनारा,

अंर्ततम को मिटा सकूँ मैं,

ज्योति चमके कुछ यूँ हमारा।


पाकर मेरा आगोश तुम सदा,

हो जाये तेरे सारे गम से जुदा,

तेरे होंठों की सिक्त मुस्कान से,

भूल जाओ मैं सारी विपदा।


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