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S.Dayal Singh

Abstract

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S.Dayal Singh

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तुझको अपने अंदर देखा

तुझको अपने अंदर देखा

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नींद में एक सलंदर देखा

मस्जिद देखी मन्दिर देखा

दरिया और समंदर देखा

दुनिया का हर मंज़र देखा

कहां कहां नहीं देखा मैंने

तुझको अपने अंदर देखा।।

कुंजर मृग पतंगम देखा 

योगी देखा जंगम देखा

साधु नंग मनंगम देखा

गंगा यमुना संगम देखा 

त्रिगर्त त्रिवेणी देखी

बाबा नाथ मछंदर देखा।।

सूरज देखा चांद भी देखा

सितारों को लाँघ भी देखा

राहू केतु फांद भी देखा

टेवा और पंचाग भी देखा

बार बार ली देख जंतरी

आखिरकार कलंडर देखा।।

मुर्शिद देखा पीर भी देखा

क़ाज़ी मुल्ला मीर भी देखा

राजा रंक फकीर भी देखा

जोरावर बलवीर भी देखा

विश्व विजेता बनने वाला

महाबली सिकंदर देखा।।

जल भी देखा थल भी देखा

झरने का कल-कल भी देखा

बल भी देखा छल भी देखा

भला बुरा हर पल भी देखा

गृहस्थी और संन्यासी देखा

आदम शाह कलंदर देखा।।

अंधेरे और उजाले में देखा

गोरे और काले में देखा

शिवा और शिवाले में देखा

देवा और देवाले में देखा 

जब मैं आँखे बंदकर देखा 

तुझको अपने अंदर देखा।

धरती आसमान में देखा

गीता ग्रंथ कुरान में देखा

खेत और खलिहान में देखा

जंगल बीयाबान में देखा

कण कण में तूं देखा मैंने

बिन तेरे सब बंजर देखा।।

कहां कहां नहीं देखा मैंने

तुझको अपने अंदर देखा।।

--एस.दयाल सिंह--



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