टट्टर से झांक रहा था चाँद
टट्टर से झांक रहा था चाँद
सहसा ऐसा आभास हुआ,
अपलक देख रहा था कोई,
बहुत देर से बांधे टकटकी ।
एकांत था और मौन आकाश,
टट्टर से झाँक रहा था चाँद,
पूछने आया था हाल-चाल ।
बैठ गया मैं सरका कर खाट,
सोचने लगा क्या दूँ जवाब ।
आखिर थक कर लेट गया,
चकित हो चाँद को निहारता ।
देर तक साथ बैठा रहा चाँद,
ह्रदय ताल में उतर गया चाँद ।
ज़ो समझे उससे क्या करना बात,
पर्याप्त है उसकी उपस्थिति मात्र ।