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नूपुर Noopur शांडिल्य Shandilya

Abstract

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नूपुर Noopur शांडिल्य Shandilya

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सुकून के दिन थे

सुकून के दिन थे

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सुबह ऑंख खुलती थी

चिङियों के चहचहाने से, 

उगते दिन के उजाले से

दिखाई देते थे सबसे पहले 

धुंधले पङते सुबह के तारे ,

और बादल रूई के फाहे से

घर के सारे बांधे कतारें सोते थे

खुली हवा की ठंडक जानते थे

तान के चादर घंटों बतियाते थे।


ठंड में छत पर दिन भी बीतते थे

घंटों तक चाय के दौर चलते थे

ट्रांज़िस्टर पर गाने बजते थे

विविधभारती सब सुनते थे

फ़रमाइशी गीत सुनते रहते थे

झुमरी तलैया के श्रोता अपने जैसे थे

मनचाहे गीत सबके मिलते-जुलते थे।


डाकिया भी रोज़ दीख जाता था

पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय या लिफ़ाफ़ा आता था

प्रेषक लिखावट से पहचाना जाता था

लंबी चिट्ठीयां बार-बार पढ़ी जाती थीं

बक्से में सहेज कर रखी जाती थीं

पढ़ कर सुनाई भी जाती थीं बङे चाव से।


और तब रौब जमाता टीवी भी नहीं था

नानी-दादी की गोद थी और कहानी-किस्से

लोक कथाएं थीं जो कभी पुरानी ना होती थीं

जीवंत चित्रों-चरित्रों से भरी थीं अमर चित्र कथा

चंपक,नंदन,चंदामामा,लोटपोट की थी हमारी दुनिया

जिल्द वाली किताबों से भरी थीं अलमारियाॅ।


ज़्यादा नहीं थे पर जितने थे दोस्त अपने थे

एक-दूसरे की ख़बर रखते थे,मिलते रहते थे

बच्चे कङी धूप में भी बाहर खिसक लेते थे

डांट खा-खा के मरे बङों से लाङ लङाते थे

सायकिल के पैडल मारने वाले बातूनी दिन थे

रस्सी कूदते, छलांग लगाते, गाते-गुनगुनाते दिन थे।


उन स्मृतियाँ के कहकहे अब तक चतुर्दिक गूँजते है

जीवन के घमासान में यादों के परचम लहराते हैं

जैसे गली के मोड़ पर पुराने परिचित मिल जाते हैं

जैसे संध्या समय घर की देहली पर दीप बाले जाते हैं।



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