अपनी हिन्दी सबकी हिन्दी
अपनी हिन्दी सबकी हिन्दी


अपनी हिन्दी,
सबकी हिन्दी ।
राज भाषा हिन्दी।
संपर्क भाषा हिन्दी।
बोलते - बोलते,
सुनते - सुनाते,
सीखी सहज ही
हम सबने हिंदी ।
हर भाषा-भाषी
को भाती हिन्दी।
बातों ही बातों में
हिलमिल जाती ।
जिस ठौर रुकी
कुछ शब्द वहाँ के
बरबस अपनाती
स्वाद बढ़ाती जाती ।
देवनागरी लिपि
में
धारण कर वर्णमाला
शब्दों में बँधती जाती
अक्षरों की बारहखङी ।
जग भर में पढ़ी जाती ।
साहित्य की परिपाटी
संप्रेषित करती जाती,
भाषाएं जोङती जाती ।
भाव और भाषा का
तालमेल बैठाती,
जैसी बोली जाती
वैसे ही लिखी जाती ।
जैसे माँ हंडिया में
दाल-भात रांधती,
बतरस में पगी हुई
खूब सुहाती हिन्दी !