ठिठुरन
ठिठुरन
बेजुबान कुत्ता अपनी धुन में जा रहा,
ठिठुरती सर्द हवाएँ में तन में सिकुड़न सी,
एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी का आश्रय लेकर,
ठिठुरन से हर-संभव स्वयं को बचा रहा।।
धरा पर कितने ही वस्त्र धारण किए,
क्या एक मेरे लिए भी होगा.....
क्या कोई हृदय पसीजेगा......
ऐसा प्रश्नचिन्ह मेरा उर सदा लगा रहा।।
मानव मंदिर में शिव अराधना करें,
मस्जिद में अल्लाह अज़ान पढ़ें,
चर्च में जीज़स केंडल प्रार्थना करें,
गुरूद्वारे में गुरु की गुरुबाणी पढ़ें।
फिर भी एक जीव दर-दर की ठोकरें खाए,
ठिठुरती ठंड के थपेड़े मुझसे सहे न जाए ,
मेरा कोई धर्म नहीं , मेरी कोई जात नहीं,
बस दयालुता के भाव पर ही जीवन पा रहा।।