ठगा सा लगता है
ठगा सा लगता है
यूं तो आजकल सारा काम मशीनों से हो रहा है
आलसी इंसान उंगलियाँ चलाने से भी बच रहा है
घर में पड़ा हर दिन महंगाई की तरह बढ़ रहा है
पर संदेश उँगलियों से नहीं, अंगूठे से कर रहा है
सोचकर, ढूंढकर या फिर नक़ल मार कर ही सही
संदेश भेजने वाला अपना प्रयास तो कर रहा है
सामने वाला इमोजी भेज जैसे पीछा छुड़ा रहा है
कुछ भी कहो लाख तर्क दो, ठगा सा लग रहा है
एक इन्सान सोच विचारकर अपनी बात कहता है
बहुत मेहनत कर लेख, कविता कहानी लिखता है
अगर पढने वाला हँसता, या रोता मुंह चिपका दे
या फिर दोनों हाथ भी जोड़ दे, ठगा सा लगता है
कोई करे तो क्या करे, ये आज का चलन जो है
सन्देश सा भावना अभिव्यक्ति का जरिया जो है
हँसना, रोना, प्रणाम, ‘योगी’ इन्हें भी झेल लेगा
जब कोई ठेंगा दिखाये, बहुत ठगा सा लगता है